Monday, December 29, 2008
यू पी में एक तेदुआ और मरा
दुधवा टाईगर रिजर्व के तहत कतर्नियाघट वन्यजीव प्रभाग के समीपवर्ती नार्थ खीरी वन प्रभाग के जंगल मे शावको के साथ डेरा जमाए एक बाघिन ने अपने बच्चो पर खतरा देखकर एक युवा तेदुआ से भिड़ गई. इस द्वंदयुद्ध में कमजोर पढे तेदुआ को मौत के घाट उतार दिया. इस तरह खीरी में एक तेदुआ की असमय मौत हों गई. जिसे वाइल्ड लाईफ के लिए अपूरणीय छ्ती माना जा रहा है. इससे पहले बिगत माह घायल तेदुआ की लखनऊ ले जाते समय मौत हों गई थी. जबकि माह मई में आदमखोर हुए तेदुआ को ग्रामीणों ने खेत में जिंदा जला दिया था. इस तरह सन् 2008 में तीन तेदुओ की हुई असमय मौतों ने यहाँ वन्यजीवों की सुरछा के लिए चल र्ही योजनाओं को करारा झट्का पहुचाया है. ............................................ डीपी मिश्र
Monday, December 15, 2008
आतंकवाद के क्या यही मायने हैं ?
देश में रोज हों रही आतंकी घटनाओं ने समाज को हिलाकर रख दिया है। लगातार बिस्फोटो ने आम आदमी कीं सुरछा और देश के खुफिया तंत्र पर सवालिया निशान लगाया है। हर आतंक कीं घटना के बाद कडी सुरछा ब्यवस्था का राग अलापा जाता है। लेकिन नतीजा शून्य रहता है। आतंकी योजनाबद्ध तरीके से घटनाओं को अंजाम देकर साफ निकल जाते हैं। उसके बाद पुलिस का काम घटना में मारे गये लोगों को उठाना और घायलो को अस्पातल पहुँचाने तक रह जाता है। जबकि सुरछा एजेसिया बिस्फोट के तरीको का पता लगाने में जुट जाती है। जब तक हम बिस्फोट के तरीको का पता लगा पाते है। तब तक आतंकी एक नई घटना को अंजाम दे देते हैं। पुलिस व जांच एजेंसियो का काम फिर वही से शुरू हों जाता है. यह आतंकी कौन हैं? और इनका मकसद क्या है? यह बात हमेशा पर्दे के पीछे रह जाती है. चंद वही मोहरे आते हैं जिनका काम खत्म हो चुका होता है. इसमे ज्यादातर हमारे बीच के कुछ गुमराह युवक होते है. जयपुर्, बगलौर्, अहमदबाद, बिस्फोट हों या दिल्ली में हुए ताजा धमाके इस बात को साबित करते हैं कि अपने हाथो हम मात खा रहे हैं. देश के जो युवक इन आतंकियों से जुड्ते हैं वह अनपढ़ से लेकर उच्च शिछा प्राप्त होते है. इन युवको के जुड्ने का मकसद क्या है इस बात का पता न सुरछा एजेंसिया लगा पा रही हैं और न ही यह युवक इसकी वजह बता पाते हैं. पुलिस ने मुठभेड़ के दौरान कई को मार गिराया, जबकि कुछ को गिरफ्तार किया. फिर भी यह बात सामने नही आई है कि इन्होने यह देश बिरोधी कदम क्यों उठाया. और इसके पीछे कौन सी मजबूरिया रही. मुख्यरूप से इस बात पे गहन जाँच कीं जरूरत है कि भारतमाता के लाल देश को क्यों नुकसान पहुंचा रहे हैं. और जब बात मुस्लिम समाज से जुडे लोगों की हों तो और भी खतरनाक हों जाती है पिछले कुछ महीनो में देश के बिभिन्न जगहों पर हुए बिस्फोटो ने मुसलिम को ही जिम्मेदार करार दिया है. जबकि देश में चौदह करोड मुसल्मान अपनी पूरी धर्मिक स्वतंत्रता के साथ रह्ते है. चंद मुस्लिम युवको के कारण पूरे देश का मुसलमान संदिग्ध निगाह से देखा जाने लगा है. मौजूदा समय में मुसिलम अघोषित रुप से आतंक का पर्याय करार दिया जा रहा है. इसमे मुख्य रुप से दोषी मुस्लिम समाज के वह अगुवाकर भी हैं जो अपनी बात मजबूत तरीके से नही रखते हैं किसी भी मुस्लिम धर्मगुरू व नेता का आतंकवाद के बिरोध में मजबूत बयान नही आया.पहले हम किसी आतंकी घट्ना के पीछे पडोसी मुल्क पाकिस्तान का हाँथ बताकर अपना पीछा छुडा लेते थे और यह आरोप मड्ते थे कि देश में आईएसआई आतंकवाद की जडो को मजबूत कर कही है. लेकिन अब स्थितिया कफी हद तक भिन्न हों गई हैं, अब देश में ही जन्मी सिमी और इंडियन मुज्जाहिद्दीन जैसी सस्थाए आतंक्वादी घटनाओं को अंजाम दे रही हैं. इन संस्थाओ के संस्थापक से लेकर कार्यकर्ता तक भारतीय हैं. महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इन संस्थाओं को पैसा और हथियार कौन मुहैया करा रहा है. और किन-किन माध्यमों से इन तक पहुँच रहे हैं ? भारतीय खुफियातंत्र इनका पता लगाने में क्यों नाकामयाब हैं. भारी तादात में आतंक कीं घटनाएँ होने के बाद भी खुफियतंत्र के पास भी केवल सतही जानकारियाँ उपलब्ध हैं. अब जरूरत इस बात कीं है कि खुफियातंत्र उन वजहों को तलाश करे जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहें हैं इतना ही नही वह आतंक कीं घटना के उस मास्टरमाइंड तक पहुँचने का रास्ता भी तलाश करें. ना कि किसी को भी पकड़कर उसे मास्टरमाइंड साबित करने में अपनी ऊर्जा खपाए. राजनीतिक स्तर पर भी इन घटनाओं का लाभ उठाना छोड़कर देशहित कीं बात करनी चाहिए, और समाज को इन आतंकियों के मनसूबो को असफल करने के लिए तैयार करना चाहिए. तभी इस तरह कीं घटनाओं पर रोक लग सकेगी.............................................................. डीपी मिश्र
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