D.P.MISHRA
RIPORTER, ADVOCATE & WILDLIFER, PHOTOGRAFER SUB. EDITER SAMAYA SAMANTER [WEEKLY]
Tuesday, January 20, 2009
Friday, January 16, 2009
क़ानून का उपहास नागरिकों के जीवन से खिलवाड
Monday, December 29, 2008
यू पी में एक तेदुआ और मरा
दुधवा टाईगर रिजर्व के तहत कतर्नियाघट वन्यजीव प्रभाग के समीपवर्ती नार्थ खीरी वन प्रभाग के जंगल मे शावको के साथ डेरा जमाए एक बाघिन ने अपने बच्चो पर खतरा देखकर एक युवा तेदुआ से भिड़ गई. इस द्वंदयुद्ध में कमजोर पढे तेदुआ को मौत के घाट उतार दिया. इस तरह खीरी में एक तेदुआ की असमय मौत हों गई. जिसे वाइल्ड लाईफ के लिए अपूरणीय छ्ती माना जा रहा है. इससे पहले बिगत माह घायल तेदुआ की लखनऊ ले जाते समय मौत हों गई थी. जबकि माह मई में आदमखोर हुए तेदुआ को ग्रामीणों ने खेत में जिंदा जला दिया था. इस तरह सन् 2008 में तीन तेदुओ की हुई असमय मौतों ने यहाँ वन्यजीवों की सुरछा के लिए चल र्ही योजनाओं को करारा झट्का पहुचाया है. ............................................ डीपी मिश्र
Monday, December 15, 2008
आतंकवाद के क्या यही मायने हैं ?
देश में रोज हों रही आतंकी घटनाओं ने समाज को हिलाकर रख दिया है। लगातार बिस्फोटो ने आम आदमी कीं सुरछा और देश के खुफिया तंत्र पर सवालिया निशान लगाया है। हर आतंक कीं घटना के बाद कडी सुरछा ब्यवस्था का राग अलापा जाता है। लेकिन नतीजा शून्य रहता है। आतंकी योजनाबद्ध तरीके से घटनाओं को अंजाम देकर साफ निकल जाते हैं। उसके बाद पुलिस का काम घटना में मारे गये लोगों को उठाना और घायलो को अस्पातल पहुँचाने तक रह जाता है। जबकि सुरछा एजेसिया बिस्फोट के तरीको का पता लगाने में जुट जाती है। जब तक हम बिस्फोट के तरीको का पता लगा पाते है। तब तक आतंकी एक नई घटना को अंजाम दे देते हैं। पुलिस व जांच एजेंसियो का काम फिर वही से शुरू हों जाता है. यह आतंकी कौन हैं? और इनका मकसद क्या है? यह बात हमेशा पर्दे के पीछे रह जाती है. चंद वही मोहरे आते हैं जिनका काम खत्म हो चुका होता है. इसमे ज्यादातर हमारे बीच के कुछ गुमराह युवक होते है. जयपुर्, बगलौर्, अहमदबाद, बिस्फोट हों या दिल्ली में हुए ताजा धमाके इस बात को साबित करते हैं कि अपने हाथो हम मात खा रहे हैं. देश के जो युवक इन आतंकियों से जुड्ते हैं वह अनपढ़ से लेकर उच्च शिछा प्राप्त होते है. इन युवको के जुड्ने का मकसद क्या है इस बात का पता न सुरछा एजेंसिया लगा पा रही हैं और न ही यह युवक इसकी वजह बता पाते हैं. पुलिस ने मुठभेड़ के दौरान कई को मार गिराया, जबकि कुछ को गिरफ्तार किया. फिर भी यह बात सामने नही आई है कि इन्होने यह देश बिरोधी कदम क्यों उठाया. और इसके पीछे कौन सी मजबूरिया रही. मुख्यरूप से इस बात पे गहन जाँच कीं जरूरत है कि भारतमाता के लाल देश को क्यों नुकसान पहुंचा रहे हैं. और जब बात मुस्लिम समाज से जुडे लोगों की हों तो और भी खतरनाक हों जाती है पिछले कुछ महीनो में देश के बिभिन्न जगहों पर हुए बिस्फोटो ने मुसलिम को ही जिम्मेदार करार दिया है. जबकि देश में चौदह करोड मुसल्मान अपनी पूरी धर्मिक स्वतंत्रता के साथ रह्ते है. चंद मुस्लिम युवको के कारण पूरे देश का मुसलमान संदिग्ध निगाह से देखा जाने लगा है. मौजूदा समय में मुसिलम अघोषित रुप से आतंक का पर्याय करार दिया जा रहा है. इसमे मुख्य रुप से दोषी मुस्लिम समाज के वह अगुवाकर भी हैं जो अपनी बात मजबूत तरीके से नही रखते हैं किसी भी मुस्लिम धर्मगुरू व नेता का आतंकवाद के बिरोध में मजबूत बयान नही आया.पहले हम किसी आतंकी घट्ना के पीछे पडोसी मुल्क पाकिस्तान का हाँथ बताकर अपना पीछा छुडा लेते थे और यह आरोप मड्ते थे कि देश में आईएसआई आतंकवाद की जडो को मजबूत कर कही है. लेकिन अब स्थितिया कफी हद तक भिन्न हों गई हैं, अब देश में ही जन्मी सिमी और इंडियन मुज्जाहिद्दीन जैसी सस्थाए आतंक्वादी घटनाओं को अंजाम दे रही हैं. इन संस्थाओ के संस्थापक से लेकर कार्यकर्ता तक भारतीय हैं. महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इन संस्थाओं को पैसा और हथियार कौन मुहैया करा रहा है. और किन-किन माध्यमों से इन तक पहुँच रहे हैं ? भारतीय खुफियातंत्र इनका पता लगाने में क्यों नाकामयाब हैं. भारी तादात में आतंक कीं घटनाएँ होने के बाद भी खुफियतंत्र के पास भी केवल सतही जानकारियाँ उपलब्ध हैं. अब जरूरत इस बात कीं है कि खुफियातंत्र उन वजहों को तलाश करे जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहें हैं इतना ही नही वह आतंक कीं घटना के उस मास्टरमाइंड तक पहुँचने का रास्ता भी तलाश करें. ना कि किसी को भी पकड़कर उसे मास्टरमाइंड साबित करने में अपनी ऊर्जा खपाए. राजनीतिक स्तर पर भी इन घटनाओं का लाभ उठाना छोड़कर देशहित कीं बात करनी चाहिए, और समाज को इन आतंकियों के मनसूबो को असफल करने के लिए तैयार करना चाहिए. तभी इस तरह कीं घटनाओं पर रोक लग सकेगी.............................................................. डीपी मिश्र
Wednesday, November 5, 2008
१५नवम्बर से दुधवा खुलेगा
यूं पी का दुधवा नेशनल पार्क
१५ नवम्बर से खुल रहा है
आपका स्वागत है ।
संपर्क-
९४१५१६६१०३
१५ नवम्बर से खुल रहा है
आपका स्वागत है ।
संपर्क-
९४१५१६६१०३
Wednesday, October 8, 2008
दुधवा रेल लाइन की मरम्मत शुरू
यूपी के एकमात्र दुधवा नॅशनल पार्क तक जाने वाली रेल लाइन पलिया के आगे कई स्थानों पर कट गयी थी। इससे रेलवे को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है । तथा इस छेत्र का आवागमन भी ठप है । जिससे यहाँ से पूर्वांचल के लोगों को गोंडा, गोरखपुर, बस्ती आदि जिलों में जाने में खासी दिक्कतें होने लगी हैं । रेलवे विभाग ने अब रेल लाइन को ठीक कराने का काम शुरू करा दिया है । रेलवे ले सूत्रों का कहना है कि तेजी से भी अगर काम हुआ तो इसमें महीनों लग जाएगें । येसी दशा में अभी भी कई माह तक गोंडा - मैलानी के बीच ट्रेनों का आवागमन बंद रहेगा । ...............डीपी मिश्रा
Thursday, September 25, 2008
दुधवा में बाढ़
यूपी के इकलोते दुधवा नैशनल पार्क में आई बाढ़ से वन्यजीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। तमाम हिरन पानी में बह गये तो अनेक वनपशु लोंगों द्वारा मारे गये हैं। येसे में बाघों की क्या दशा हुई होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके बाद भी यूपी सरकार द्वारा बाढ़ के रोकने के कोई इंतजाम नहीं किए जा रहें हैं। यह चिंता का विषय है । जरूरत है इस साल सुहेली नदी की सफाई में ३.५० करोड़ की बर्बादी की जाँच कराई जाए । इसके अलावा किशनपुर पशु विहार में झाडी ताल, जो बारहसिंघा का एकमात्र प्राक्रतिक वास स्थल है वह भी शारदा नदी मिटाए दे रही है । इसके रोकथाम के उपाय भी वन विभाग नहीं कर रहा है . अगर यही हाल रहा तो दुधवा के वन्यजीव कागजों में सिमट जायेगें .
Friday, September 19, 2008
यूपी के येकलोते दुधवा नॅशनल पार्क के जंगल बीच से निकली रेल लाइन ४ हाथी ६ बाघों समेत दुर्लभ प्रजाति के दर्जनों वन पशुओं की बलिवेदी बन चुकी है. इसके बाद भी केन्द्र oकी सरकार रेल लाइन को हटाने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किए जा रहें हैं। हालांकि वन्यजीव प्रेमी रेल लाइन को जंगल के बीच से हटाने की मांग काफी अरसे से करते आ रहें हैं लेकिन बन विभाग द्वारा कोई सार्थक प्रयास नहीं किए जा रहें हैं। यूपी रेल जोन की डीआरएम ने रेल ट्रेक के दोंनों तरफ़ लाईटें लगाने की बात कही है। इस पर होनें वाला धन कौन खर्च करेगा इस पर कोई विभाग बोलने को तैयार नहीं है । मालूम हो कि यूपी के एकमात्र दुधवा नॅशनल पार्क के बीच से करीब ४० किमी जंगल के बीच से रेल लाइन निकली है जिस पर से दिन - रात तेज रफ्तार से ट्रेनें निकलती हैं जिनकी चपेट में आने से अक्सर वनपशु मारे जाते हैं । यूपी सरकार का वन महकमा कागजी काम कर रहा है । अब जरूरत इस बात की है कि जंगलों के सिमटते दायरे के बीच येसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें वनपशु सुरछित रह सकें । देवेन्द्र प्रकाश मिश्रा
हत्यारिन रेल लाइन
यूंपी के दुधवा नेशनल पार्क के बीच से निकली रेल लाइन हाथी व बाघों की बलिबेदी बन गयी है पिछले ५ साल में आधा दर्जन बाघ, चार हाथी, भालू , मगरमच्छ , हिरन तथा तमाम विलुप्तप्राय वनपशु मारे जा चुकें हैं , इसके बाद भी केन्द्र व प्रदेश की सरकार द्वारा एसी कोई ब्यवस्था नहीं की जा रही है जिससे जंगल के भीतर ट्रेन से टकरा कर वन्यजीव न मर सकें। .............................डीपी मिश्रा
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